देशभर में 16 करोड़ लोग पीते हैं शराब, 1.5 करोड़ नाबालिग बच्चे करते हैं नशीले पदार्थों का सेवन

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भारत में लगभग 1.5 करोड़ नाबालिग बच्चे किसी न किसी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी. सुप्रीम कोर्ट ने खतरे की सीमा को मापने के लिए 2016 में सरकार को एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. 2018 में किए गए सर्वे के परिणाम सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट को एक हलफनामे के माध्यम से प्रस्तुत किए गए, जिनकी जांच बुधवार को होने की संभावना है. मंत्रालय ने 10-17 साल के आयु वर्ग के बच्चों में शराब से लेकर नशीले पदार्थ (Opioids) के साथ ही विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों के सेवन करने की जानकारी दी है।

सर्वे से पता चला कि बच्चों में सबसे ज्यादा प्रचलन नशीले पदार्थों का सेवन करने का है, जिसमें लगभग 40 लाख बच्चे इसका सेवन करते थे. इसके बाद 30 लाख नाबालिगों की ओर से धुएं वाले नशे (Inhalants) का इस्तेमाल किया जाता था. शराब का सेवन भी करीब तीस लाख बच्चे करते थे. इसके साथ ही इस सर्वे में पता चला कि बच्चे अन्य हानिकारक ड्रग्स जैसे एम्फैटेमिन, कोकीन, भांग आदि का उपयोग करते थे. यह कुल जनसंख्या का 1 प्रतिशत से भी कम था. कुल मिलाकर इस रिपोर्ट में कहा गया कि लगभग 1.5 करोड़ बच्चे इन नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।

देशभर के 16 करोड़ लोग पीते हैं शराब

सरकार की ओर सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में वयस्कों (18-75 साल) में भी शराब और ड्रग्स लेने की जानकारी सामने आई है, जो स्वाभाविक रूप से नाबालिगों बच्चों की अपेक्षा अधिक है. देश में लगभग 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं जबकि 5.7 करोड़ से अधिक लोग हानिकारक या जहरीली शराब के उपयोग से प्रभावित हैं और इसके लिए उन्हें मदद की जरूरत है।

लगभग 25 लाख लोग भांग की लत से हैं पीड़ित

सरकार के इन सभी आकंड़ों से पता चलता है कि 3.1 करोड़ व्यक्ति भांग का सेवन करते हैं, जिनमें से लगभग 25 लाख लोग भांग की लत से बुरी तरह से पीड़ित हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि 2.26 करोड़ लोग नशीले पदार्थों (Opioids) का उपयोग करते हैं, जिनमें से लगभग 77 लाख को इस लत से बाहर निकालने की जरूरत है।

स्कूली बच्चों के बीच सर्वे का कोर्ट ने दिया था आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे खतरे की घंटी बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने कई दिशा निर्देश जारी किए थे, जिसमें केंद्र से स्कूली बच्चों के बीच बढ़ते नशीले पदार्थों के सेवन के मामलों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा गया था. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसका एक व्यापक रूप से राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया जाए।

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