Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव नजदीक है सभी पार्टियों की नजर एक बार फिर उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं, इसकी वजह कई है, लेकिन सबसे बड़ी वजह यहाँ की 80 लोकसभा की सीटें हैं। जो किसी भी दल के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसीलिए सभी पार्टियां यूपी के हर एक सीट पर अलग अलग रणनीति के तहत अपने कैंडिडेट को चुनावी मैदान में उतार रहीं हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्या विपक्षी दल और मजबूती के साथ चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी इस बार लोक सभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी हैं। अखिलेश यादव इस बार किसी भी सीट पर किसी भी कैंडिडेट को टिकट देने से पहले उस सीट की इतिहास को खंगालने के बाद जातीय समीकरण का ध्यान रखते हुए ही किसी को भी प्रत्याशी बना रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अखिलेश क सामने अब अपने पुराने गढ़ बचा लेना है।
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-आरएलडी के साथ गठबंधन करने के बाद भी सपा अपने परिवार की परंपरागत सीट नहीं बचा सकी थी। मोदी लहर में मैनपुरी सीट से ही मुलायम सिंह यादव जीत सके थे और उनके निधन के बाद डिंपल यादव सांसद बनी हैं। फिरोजाबाद, बदायूं और कन्नौज सीट पर सपा की हार मुलायम परिवार के लिए यह बड़ा सियासी झटका था। इतना ही नहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा इस बेल्ट में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। आजमगढ़ में भी समाजवादी पार्टी और अखिलेश को निरहुआ के सामने मात है।
आलू बेल्ट का यह इलाका मुलायम सिंह के दौर में सपा का कभी मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन अखिलेश यादव के वक्त में पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है। इसी का फायदा बीजेपी एक के बाद एक चुनाव में उठा रही है, लेकिन अखिलेश यादव अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नए समीकरण के साथ अपनी परंपरागत सीटें ही नहीं बल्कि आसपास की भी सीटों को जीतने का सियासी ताना बाना बुन रहे हैं। उन्होंने अपने परिवार से तीन सदस्यों को अभी टिकट दिया है, लेकिन उससे सटी हुई सीटों पर जिस तरह से गैर-यादव ओबीसी यानि शाक्य दांव चला है, उसके पीछे के राजनीतिक मकसद को समझा सकता है। अखिलेश यादव ने मैनपुरी से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं सीट से शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया है। कन्नौज से सटी कानपुर देहात सीट पर राजाराम पाल को टिकट दिया है और दूसरी तरफ फर्रुखाबाद सीट पर डॉ. नवल किशोर शाक्य को प्रत्याशी बनाया है। दोनों ही प्रत्याशी गैर-यादव ओबीसी हैं। राजाराम पाल अति पिछड़ा वर्ग के गड़रिया समुदाय से आते हैं, जबकि नवल किशोर ओबीसी के शाक्य समुदाय से हैं। इस तरह यादव के साथ पाल और शाक्य समुदाय का एक मजबूत कांबिनेशन बनाने की रणनीति है ताकि कानपुर देहात और फर्रुखाबाद के साथ कन्नौज के सियासी समीकरण साधने की रणनीति है।
फिरोजाबाद सीट से अक्षय यादव को प्रत्याशी बनाया है, उससे सटी हुई एटा सीट पर सपा ने देवेश शाक्य को प्रत्याशी बनाया है. एटा से मैनपुरी सीट भी लगी हुई है, जहां से डिंपल यादव चुनावी मैदान में हैं. फिरोजाबाद से कई बार सांसद रहे रामजीलाल सुमन को सपा ने राज्यसभा भेजने का फैसला करके पहले ही दांव चल दिया है और अब एटा से देवेश शाक्य पर दांव खेला है. सपा ने इस तरह तीनों ही सीटों के सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की रणनीति अपनाई है, क्योंकि शाक्य वोटर इस पूरे बेल्ट में निर्णायक भूमिका में है. मैनपुरी में सपा के सामने बीजेपी शाक्य दांव ही चलती रही है और एटा में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर बीजेपी से सांसद हैं, जो लोधी समुदाय से आते हैं. इस तरह लोधी के सामने शाक्य दांव सपा ने चला है, जिससे एटा, फिरोजाबाद और मैनपुरी तीनों ही सीटों को साधने का प्लान है.अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या इसबार up में कांग्रेस और सपा मिलकर जिस दांव को चलने की तैयारी कर रहीं हैं उससे कितना फ़ायदा मिलेगा।
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