भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसका पता आज चल जाएगा। आंकड़ों में द्रौपदी मुर्मू के पास यशवंत सिन्हा से ज्यादा समर्थन दिख रहा है। इस चुनाव में जीत का अंतर प्रत्याशी के पीछे सरकार की ताकत को भी दिखाते हैं।
ऐसे में पिछले 65 वर्षों में हुए राष्ट्रपति चुनावों के जरिए जानते हैं कि आखिर कब-कब इस पद के लिए होने वाले चुनाव एकतरफा हो गए और कब इनके लिए सरकार को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है? और कब सत्ताधारी दल का उम्मीदवार हार गया? 1. 2017: रामनाथ कोविंद vs मीरा कुमार
पिछला राष्ट्रपति चुनाव 2017 में हुआ था। मोदी सरकार की तरफ से इस चुनाव में रामनाथ कोविंद उम्मीदवार थे, जबकि विपक्ष ने लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को उतारा था। मीरा कुमार के पास 17 विपक्षी दलों का समर्थन था। इनमें समाजवादी पार्टी और बसपा भी शामिल रहीं।बिहार में राजद की साथी पार्टी रही जदयू ने सभी को चौंकाया और रामनाथ कोविंद का समर्थन किया। कोविंद को 7 लाख 2 हजार 44 वैल्यू के वोट मिले, वहीं मीरा कुमार को 3 लाख 67 हजार 314 वोट मिले। कोविंद 65.65 फीसदी वोट हासिल कर जीतने में सफल रहे।
2. 2012: प्रणब मुखर्जी vs पीए संगमा
इस चुनाव में यूपीए-2 सरकार के उम्मीदवार रहे प्रणब मुखर्जी जीते। उन्हें विपक्ष के पीए संगमा के खिलाफ लगभग 70 फीसदी वोट मिले। जहां प्रणब मुखर्जी को 7 लाख 13 हजार 763 मत प्राप्त हुए, वहीं पीए संगमा को 3,15,987 वोट मिले थे।
3. 2007: प्रतिभा पाटिल vs भैरो सिंह शेखावत
2007 में भारत को पहली महिला राष्ट्रपति मिली थीं। तब कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के समर्थन से प्रतिभा पाटिल ने भाजपा उम्मीदवार भैरो सिंह शेखावत को हराया था। जहां प्रतिभा पाटिल को 6,38,116 वैल्यू के वोट मिले, वहीं शेखावत को 3,31,306 मत मिले थे। इस चुनाव में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया था।
4. 2002: एपीजे अब्दुल कलाम vs कैप्टन लक्ष्मी सहगल
एनडीए सरकार के उम्मीदवार एपीजे अब्दुल कलाम को जीत मिली। पूर्व वैज्ञानिक कलाम को कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी दलों का समर्थन मिला था। वाम दलों ने इस चुनाव में कैप्टन लक्ष्मी सहगल को प्रत्याशी बनाया। यह इतिहास के सबसे एकतरफा मुकाबलों में से एक रहा। अब्दुल कलाम को 10,30,250 वोटों में से 9,22,884 वोट मिले, वहीं सहगल महज 1,07,366 जुटा सकीं।
5. 1997: केआर नारायणन vs टीएन शेषन
1997 के चुनाव को अगर इतिहास का सबसे एकपक्षीय चुनाव कहा जाए तो कोई दो राय नहीं होगी। इस चुनाव में यूनाइटेड फ्रंट सरकार और कांग्रेस की तरफ से केआर नारायणन प्रत्याशी थे। तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने भी नारायणन को समर्थन दिया। नारायणन के खिलाफ शिवसेना ने पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को उतारा। केआर नारायणन को 9,56,290 वोट मिले, वहीं शेषन महज 50,361 वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। शेषन को शिवसेना के अलावा कुछ निर्दलीयों का ही समर्थन मिल सका।
6. 1992: शंकर दयाल शर्मा vs जॉर्ज स्वेल
1992 में कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बनाए गए शंकर दयाल शर्मा ने आसान जीत हासिल की थी। विपक्ष ने इस चुनाव में जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को खड़ा किया था, जो कि पूर्व सांसद और लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर भी रह चुके थे। स्वेल इससे पहले नॉर्वे और म्यांमार में भारत के राजदूत भी रह चुके थे और मेघालय के आदिवासी इसाई समुदाय से आते थे। मेघालय को राज्य का दर्जा दिलाने के अभियान में भी स्वेल ने अहम भूमिका निभाई थी। स्वेल की उम्मीदवारी के लिए तब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और भाजपा ने समर्थन दिया था।
हालांकि, शंकर दयाल शर्मा को चुनाव में 6,75,804 वोट मिले। वहीं स्वेल 3,46,486 वोट पा सके। इस चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने भी किस्मत आजमाई थी। उन्हें सिर्फ 2704 कीमत के वोट हासिल हुए थे। इसके अलावा देशभर में 300 चुनाव लड़ चुके काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ भी खड़े हुए थे। उन्हें 1135 वोट मिले थे।
7. 1987: आर वेंकटरमण vs वीआर कृष्ण अय्यर
इस साल कांग्रेस की तरफ से उपराष्ट्रपति रह चुके आर वेंकटरमण को उम्मीदवार बनाया गया। लेफ्ट ने सुप्रीम कोर्ट पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर को खड़ा किया। वेंकटरमण के लिए इस चुनाव में जीत काफी आसान रही। उन्हें 7,40,148 वोट मिले, जबकि अय्यर 2,81,550 मत हासिल हुए। इस चुनाव में बिहार के एक निर्दलीय प्रत्याशी मिथिलेश कुमार को 2223 वोट मिले थे।
8. 1982: ज्ञानी जैल सिंह vs एचआर खन्ना
1982 में कांग्रेस ने ज्ञानी जैल सिंह को उम्मीदवार बनाया, जबकि विपक्ष के नौ दलों ने ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना को खड़ा किया। खन्ना को इमरजेंसी के दौर में आपातकाल के खिलाफ खड़े होने के लिए पहचाना जाता था। उन्होंने 1977 में जस्टिस एमएच बेग को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्ति दिए जाने के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। जैल सिंह को इस चुनाव में 7,54,113 वोट मिले थे, वहीं खन्ना सिर्फ 2,82,685 वोट ही जुटा पाए।
9. 1977: नीलम संजीव रेड्डी
1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद उपराष्ट्रपति बीडी जट्टी ने कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला। हालांकि, अगले चुनाव छह महीने के अंदर ही कराए जाने थे। इस चुनाव के लिए 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया। लेकिन स्क्रूटनी में सिर्फ एक को छोड़कर सभी नामांकन रद्द हो गए। इकलौता बचा नामांकन नीलम संजीव रेड्डी का था। रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बनने वाले पहले और अब तक की इकलौती शख्सियत हैं।
10. 1974: फखरुद्दीन अली अहमद vs त्रिदीब चौधरी
भारत के छठे राष्ट्रपति चुनाव 1974 में कराए गए थे। इसमें कांग्रेस ने फखरुद्दीन अली अहमद को उम्मीदवार बनाया। संयुक्त विपक्ष की ओर से त्रिदीब चौधरी उतरे, जो रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव और संस्थापक थे। वे पश्चिम बंगाल के बहरामपुर से लोकसभा सांसद भी थे। इस चुनाव में फखरुद्दीन अली अहमद को 7,65,587 वोट मिले थे, जबकि चौधरी को 1,89,196 वोट हासिल हुए थे।
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