Lok Sabha Election Result: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद केंद्र में एक बार फिर नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। आठ जून को नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार पीएम पद की शपथ ले सकते हैं। मोदी 3.0 के सत्ता में आने से पहले अब कई सीटों पर बीजेपी की हार को लेकर मंथन शुरू हो गया है। इन्हीं सीटों में से एक सीट है फैजाबाद की।
दरअसल, फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत ही अयोध्या शहर आता है। वहीं अयोध्या जहां राम मंदिर का निर्माण कराने के साथ बीजेपी को उम्मीद थी कि वह इस बार इस सीट पर बडे़ अंतर से जीत दर्ज करेगी। पर ऐसा हुआ नहीं। इस सीट से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के उस समय के मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को हराया है। सोशल मीडिया पर अब इस हार को लेकर तरह-तरह के कटाक्ष किए जा रहे हैं। इस हार के पीछे के कारणों के बारे बताने जा रहे हैं अब ऐसे में बीजेपी के अंदर ये एक बड़ी बहस बनती दिख रही है कि आखिर राम की नगरी में पार्टी को हार मिली कैसे?
खासकर तब जब चुनाव से पहले राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर बीजेपी ने देश भर में अभियान भी चलाया था। बता दे कि बीजेपी को फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर हार का सामना करना पड़ा है। अयोध्या भी इसी में से एक है बीजेपी ने राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में माहौल बनाया था और उसे उम्मीद थी कि इसका फायदा उसे यूपी के लोकसभा चुनावों में मिलेगा। लेकिन बीजेपी की ये रणनीति न सिर्फ यूपी में धराशायी हो गई बल्कि अयोध्या में भी उसे बिल्कुल विपरीत नतीजे मिले।जनता के बीच भी ये चर्चा जोरों पर है कि जिस अयोध्या में बीजेपी ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का इतना बड़ा आयोजन किया और इस इवेंट को दुनियाभर में हाईलाइट किया, वहां से वह हार गई। अयोध्या में पीएम मोदी खुद गए, सीएम योगी ने भी कई दौरे किए, देशभर की हस्तियों को यहां बुलाया गया, फिर भी बीजेपी यहां से जीत हासिल नहीं कर सकी। इसके पीछे क्या कुछ वजह है वो हम आज आपको बताएंगे?
अयोध्या में बीजेपी की हार का कारण
1-जातिगत समीकरण: अयोध्या में पासी बिरादरी बड़ी संख्या में है। ऐसे में सपा ने पासी चेहरे अवधेश प्रसाद को अयोध्या में अपना उम्मीदवार बनाया। यूपी की सियासत में अवधेश प्रसाद दलितों का एक बड़ा चेहरा हैं और उनकी छवि एक जमीनी नेता की है। सपा को अयोध्या में दलितों का खूब वोट मिला।
2-अवधेश की लोकप्रियता: सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद की अयोध्या की जनता पर अच्छी पकड़ है। इस बात का अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि वह 9 बार के विधायक हैं और मंत्री भी रहे हैं। वह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से भी एक हैं।
3-संविधान पर बयान पड़ा भारी: अयोध्या से बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह का संविधान को लेकर दिया गया उनका बयान भारी पड़ गया। लल्लू सिंह वही नेता हैं, जिन्होंने कहा था कि मोदी सरकार को 400 सीट इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है। उनके इस बयान का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा।
4-लल्लू सिंह से नाराजगी: लल्लू सिंह अयोध्या से 2 बार से सांसद हैं। बीजेपी ने उन्हें तीसरी बार उम्मीदवार बनाया। जबकि जनता के बीच लल्लू को लेकर काफी नाराजगी दिखी क्योंकि अयोध्या के आस-पास के इलाकों में विकास के कार्य नहीं हुए। राम मंदिर पर फोकस्ड होने की वजह से जनता के मुद्दे पीछे छूटते गए। जिसका असर ये हुआ कि लल्लू को कम वोट पड़े।
5-राम मंदिर निर्माण के लिए घर और दुकान तोड़े गए: अयोध्या में 14 किलोमीटर लंबा रामपथ बनाया गया। इसके अलावा भक्ति पथ और रामजन्मभूमि पथ भी बना। ऐसे में इसकी जद में आने वाले घर और दुकानें टूटीं लेकिन मुआवजा सभी को नहीं मिल सका। उदाहरण के तौर पर अगर किसी शख्स की 100 साल पुरानी कोई दुकान थी लेकिन उसके पास अगर कागज नहीं थे तो उसकी दुकान तो तोड़ी गई लेकिन मुआवजा भी नहीं दिया गया। मुआवजा केवल उन्हें मिला, जिसके पास कागज थे। ऐसे में लोगों के बीच नाराजगी थी। जिसे उन्होंने वोट न देकर जाहिर किया।
6-आरक्षण पर मैसेज पड़ा भारी: अयोध्या में बीजेपी को अपने नेताओं की बयानबाजी और प्रोपेगंडा भी भारी पड़ा। जनता के बीच ये मैसेज गया कि बीजेपी आरक्षण को खत्म कर देगी। संविधान को बदल देगी। ऐसे में वोटरों का एक बड़ा तबका सपा की ओर चला गया।
7-युवाओं में गुस्सा: बीजेपी को लेकर युवा वर्ग में एक गुस्सा दिखाई दिया। युवा अग्निवीर स्कीम को लेकर सरकार से सहमत नहीं दिखे। वहीं बेरोजगारी और पेपर लीक भी युवाओं के गुस्से की अहम वजह रही। इस वजह से युवाओं का वोट भी अयोध्या में बीजेपी के खिलाफ गया।
8-कांग्रेस के लिए दलितों में सॉफ्ट कॉर्नर: जहां अयोध्या के दलितों में बीजेपी को लेकर नाराजगी थी, तो वहीं कांग्रेस के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर भी था। जिसका असर चुनावों में देखने को मिला।
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