बुधवार को एकनाथ शिंदे जब सूरत से अपने समर्थक विधायकों के साथ गुवाहाटी के लिए उड़े तो किसी को अंदाजा नहीं था कि उसी रात ‘वर्षा’ के अपने सरकारी आवास को छोड़कर उद्धव ठाकरे भी ‘मातोश्री’ चले जाएंगे। एक नाथ शिंदे खुद को बालासाहेब ठाकरे का सच्चा सिपाही बताते हुए कहते हैं कि इस शिवसेना ने हिंदुत्व के साथ समझौता कर लिया है। महाराष्ट्र की राजनीति में आया तूफान आखिर कब उठा था। क्या इसके पीछे सिर्फ बीजेपी है? या समय के साथ ठाकरे परिवार की पकड़ शिवसेना पर कमजोर हुई है? आइए जानते हैं महाराष्ट्र के सियासी हलचल की इनसाइड स्टोरी
कहां चूक गए उद्धव ठाकरे?
ढाई साल पहले जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने सियासी दंगल में शरद पवार के साथ मिलकर बीजेपी को पटखनी दी थी। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हैं। उद्धव ठाकरे से कहां चूक हुई के सवाल पर जेएनयू में प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डाॅ मनीष दभाडे बताते हैं, ‘उद्धव ठाकरे समय के साथ बदले नहीं, उनकी पार्टी के विधायकों की एक बड़ी शिकायत यह है कि समय मांगने पर भी वो मिलते नहीं थे। जिसकी वजह से क्षेत्र की समस्याओं का भी ठीक से समाधान नहीं हो पा रहा था।’ हालांकि, बुधवार को फेसबुक लाइव में उद्धव ठाकरे ने कहा कि पहले कोविड और फिर अपनी सर्जरी की वजह से थोड़ी दिक्कत आई थी। लेकिन उनकी इस सफाई से कितने विधायक सहमत होंगे यह बड़ा सवाल है?
आदित्य ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच की खटपट पड़ी महंगी?
एकनाथ शिंदे, बालासाहेब ठाकरे के वक्त से ही शिवसेना के काफी प्रभावशाली नेता माने जाते रहे हैं। नई सरकार के गठन के वक्त माना जा रहा था कि शिंदे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, यही वजह थी तब इस बागी गुट में गठबंधन पर असहमति के बाद भी विरोध नहीं किया था। लेकिन आखिरी वक्त में शरद पवार ने शिंदे की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। उसी के बाद से ही लगातार शिंदे को अपनी उपेक्षा की शिकायत रहने लगी। महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि आदित्य ठाकरे लगातार एकनाथ शिंदे के विपरीत जाकर पार्टी में फैसले ले रहे थे। और इन सब में उन्हें संजय राउत जैसे नेताओं का साथ मिल रहा था। यह बात शिंदे को काफी समय से खटक रही थी। एमएलसी चुनाव के वक्त भी कांग्रेस के प्रत्याशी को वोट देने के मामले में भी दोनों नेताओं के बीच नोक-झोंक की खबरें सामने आई थीं।
326 total views, 1 views today