ANEK Review : फिल्म ANEK विश्व सिनेमा का नया अनुभव

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ANEK Review : जब हम एम सी मैरीकॉम, मीराबाई चानू और लवलीना बोरगोहेन का नाम सुनते हैं तो हमारे जेहन में उन भारतीय खिलाड़ियों का चेहरा उभर आता है। जिन्होंने देश के लिए खेलकर भारत का सिर दुनिया में ऊंचा किया है।

ANEK Review : सिर्फ 24 किमी चौड़े गलियारे से बाकी देश से जुड़े उत्तर पूर्व के राज्यों के लोगों की भावना किस तरह से हमसे जुड़ी हैं। और कितना उनको हम भारतीय समझते हैं। या कुछ अलगाववादी संगठन नार्थईस्ट के लोगों को भारतीय मानने से इनकार करता है। यह सभी मुद्दे अक्सर ही कई घटनाओं में सामने आ ही जाते हैं।

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ANEK Review : अनुभव सिन्हा निर्देशित और आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म ‘अनेक’ देश के सबसे मशहूर नारे ‘जय जवान जय किसान’ को दो हिस्सों में बांटकर एक दूसरे के आमने सामने ले आती है। सरकार उत्तर पूर्व में शांति चाहती है। शांति वार्ता हो चुकी है। शांति समझौते पर हस्ताक्षर अब नाक का सवाल है। टेबल पर बैठे उग्रवादियों के नेता की नाक में दम करने के लिए एक अंडरकवर एजेंट जिस गुट को पालता रहा है, वही अब शांति समझौते के खिलाफ है।

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हिंसा को बनाए रखना शांति बनाए रखने से ज्यादा आसान :

सरकार शांति चाहती है। और, फिल्म एक जगह कहती है,  ‘हिंसा को बनाए रखना शांति बनाए रखने से ज्यादा आसान है।’ सच भी है युद्ध एक कारोबार है जिसमें मुनाफे की गारंटी शर्तिया होती है। शांति में क्या रखा है, सब कुछ सही चलता रहे तो न सरकारों के पास काम होगा और न ही हथियार बेचने वालों के पास कारोबार।

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ANEK Review : उत्तर पूर्व के इस दर्द को परदे पर बहुत ही सादगी और सच्चे मन से पेश करती है फिल्म ‘अनेक’। आइडो और जोशुआ के अनकहे प्रेम की कहानी इस सच का छलावा है। ये वैसा ही छलावा है जैसा उत्तर पूर्व के राज्यों के साथ लगातार होता रहा है। दिल्ली की बनिस्बत चीन और म्यांमार के ज्यादा करीब इन राज्यों के लोग खुद को ‘भारतीय’ क्यों और कैसे कहें, इस पर सवाल उठाते आयुष्मान खुराना के चेहरे की झुंझलाहट ही वहां के सामान्य नागरिक का दर्द है। एंड्रिया को भारत की तरफ से खेलना है लेकिन लोग उसे भारतीय मानें तब ना। फिल्म के क्लाइमेक्स में आइडो और अमन का संघर्ष समानांतर घटता है।

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जिस तरह की ये फिल्म बनी है और जो इसका असर जाग्रत दर्शकों पर होता है, उस लिहाज से इसे अगले ऑस्कर पुरस्कार समारोह में भारत की तरफ से आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में जाना ही चाहिए। फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की ज्यूरी की अपनी काबिलियत पर भी इस फैसले की धुरी टिकी रहेगी।

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फिल्म ‘अनेक’ उसी कंपनी टी सीरीज की फिल्म है जिसकी पिछली फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ इन दिनों बॉक्स ऑफिस की फेवरेट फिल्म है। दोनों फिल्मों के प्रचार के धरातल का अंतर भी फिल्म की रिलीज के पहले बने माहौल से समझ आता है। ये ‘द नॉर्थ ईस्ट फाइल्स’ है। इस फिल्म के लिए किसी राजनीतिक दल या उससे जुड़े संगठन ग्रुप बुकिंग नहीं करेंगे लेकिन नई पीढ़ी के दर्शकों के लिए ये एक जरूरी फिल्म है। इस देश को जानने के लिए। इस देश का दर्द पहचानने के लिए।

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