लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूपी में राजनीतिक समीकरण साधने शुरू हो गए हैं। सपा वोट बैंक माने जाने वाले मुस्लिमों पर भाजपा, बसपा सेंध मारी में लग गई है। हालांकि ऐसा पहली बार हो रहा है जब भाजपा पसमांदा मुस्लिम को अपने पक्ष में करने लगी है। बसपा ने तो इमरान मसूद जैसे मुस्लिम नेता को अपने पाले लाकर आगे के संकेत भी दे दिए हैं। वहीं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के आगे चुनौती होगी कि अपने मुस्लिम वोट बैंक को कैसे बरकरार रख पाते हैं।
बसपा के लिए आक्सीजन साबित हो सकते हैं इमरान
इमरान मसूद हाथी पर सवार हो गए हैं। ऐसी चर्चा है कि इमरान बसपा के लिए आक्सीजन साबित हो सकते हैं। नौ बार के सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद के राजनीतिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले इमरान मसूद सहारनपुर की राजनीति की धुरी माने जाते हैं। मुस्लिम मतदाताओं पर उनका अच्छा खासा प्रभाव है। जिले में जो भी सियासी समीकरण तैयार होते हैं, उसके केंद्र में इमरान मसूद को रखा जाता है। ऐसा उन्होंने वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कर दिखाया। वर्ष 2014 में जहां उन्होंने चार लाख से अधिक वोट हासिल किए, वहीं वर्ष 2019 में दो लाख से अधिक मत लाकर सभी को चौंका दिया। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इमरान मसूद कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। इसमें उनका असर कितना रहा, यह तो साफ नहीं, लेकिन सपा की सीटें जहां पहले एक थी, वह दो तक जा पहुंचीं।
सपा से इन मुस्लिम नेताओं की बसपा में घर वापसी
यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कई बड़े मुस्लिम नेता सपा के साथ आए पर उनकी घर वापसी हो रही है। बसपा से सपा में आए शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने फिर घर वापसी कर ली है। मुरादाबाद में इकराम कुरैशी, रिजवान, उतरौला में पूर्व विधायक आरिफ अनवर, फिरोजाबाद में पूर्व विधायक अजीम जैसे तमाम इलाकों के कद्दावर मुस्लिम चेहरों ने पार्टी छोड़ी है।
सपा का बिगड़ सकता गणित
वेस्ट यूपी में दलित-मुस्लिम वाटों का गठजोड़ जीत का समीकरण तय करता है। उधर, इमरान के जाने के बाद सपा का गणित भी बिगड़ सकता है। क्योंकि, मुस्लिम मतों को रूझान यदि इमरान मसूद की ओर चला गया तो सपा का जनाधार खिसक सकता है। ऐसे अखिलेश यादव सामने बड़ी चुनौती होगी कि सपा के वोट बैंक को कैसे बचाए।
बीजेपी का पसमांदा मुस्लिम समीकरण
पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुस्लिमों को जोड़ने की बात की थी। खासतौर पर पसमांदा मुस्लिमों पर फोकस करने का मंत्र पार्टी को दिया था और अल्पसंख्यक तबके को लुभाने के लिए स्नेह यात्रा निकालने की भी बात कही थी। अब भाजपा पसमांदा के अजेंडे पर चुनावी राजनीति में भी आगे बढ़ाने का प्लान बना रही है। इसकी शुरुआत भी यूपी से ही हो रही है, जो ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए अकसर चर्चा में रहा है। नवंबर या दिसंबर यूपी में नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं और उसमें भाजपा अल्पसंख्यक वार्डों में बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। दरअसल, मुस्लिमों में 85 फीसदी आबादी पसमांदा वर्ग की है, जबकि 15 से 20 फीसदी ही अशराफ हैं। भाजपा का फोकस है कि इस वर्ग को टारगेट करने रणनीति बनाई जाए।
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