Bihar में जातिगत सर्वे के नाम से जातिगत जनगणना के लिए अधिसूचना हुई जारी, अन्य राज्यों में भी उठने लगी है मांग

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Bihar : बिहार में होने वाली जातिगत जनगणना को लेकर राज्य सरकार की तैयारियां शुरू हो गई हैं। मुख्यमंत्री नितीश के निर्देश पर बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इसकी अधिसूचना जारी कर दी है।

अधिसूचना के मुताबिक, नीतीश सरकार अपने संसाधनों से बिहार में जाति आधारित जनगणना कराएगी। जनगणना के काम को पूरा करने की डेडलाइन 28 फरवरी 2023 रखी गई है। इसके अलावा जातिगत जनगणना के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

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इस सर्वे के दौरान संबंधित लोगों की आर्थिक स्थिति का भी सर्वेक्षण कराया जाएगा।  बिहार के बाद अब दूसरे राज्यों में भी इस तरह के सर्वे की मांग उठने लगी है।इससे पहले भी केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना की मांग विपक्षी दल करते रहे हैं।

Bihar : पिछले साल बिहार के नेताओं ने प्रधानमंत्री से मुलाकात करके जातिगत जनगणना की मांग की थी। हालांकि, केंद्र की मोदी सरकार इससे इनकार करती रही है। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय लोकसभा में भी इस तरह की जनगणना से इनकार कर चुके हैं।

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बिहार में हो रहे जातिगत सर्वे को जातिगत जनगणना क्यों नहीं कहा जा रहा है? क्या पहले भी इस तरह का सर्वे किसी राज्य ने किया है? आखिरी बार इस तरह की जनगणना कब हुई थी? पहले कब जातिगत जनगणना की मांग हुई है? केंद्र सरकारें जातिगत जनगणना से क्यों कतराती हैं?

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जनगणना केंद्र सरकार द्वारा कराई जाती है। केंद्र सरकार ही जातिगत जनगणना करा सकती है। केंद्र सरकार की ओर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनगणना कराई जाती है। पिछड़ी और अन्य जातियों की जातिगत जनगणना आजादी के बाद कभी नहीं कराई गई। राज्य सरकारें जनगणना नहीं करा सकती हैं। इसलिए राज्य सरकार इसे सर्वे का नाम देती हैं।

नितीश से पहले सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक में कराया था जाती सर्वे – 

बिहार से पहले कर्नाटक में भी इस तरह का सर्वे हुआ था। 2014 में उस वक्त की सिद्धारमैया सरकार ने जातीय सर्वे किया था। इसका नाम सामाजिक एवं आर्थिक सर्वे दिया गया था। 2017 में इसकी रिपोर्ट आई, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।

Bihar : दरअसल, अपने समुदाय को OBC या SC/ST में शामिल कराने के लिए जोर दे रहे लोगों के लिए यह सर्वे बड़ा मौका बन गया। अधिकतर ने उपजाति का नाम जाति के कॉलम में दर्ज कराया। इसके चलते कर्नाटक में अचानक 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं। लगभग 80 नई जातियां तो ऐसी थीं, जिनकी जनसंख्या 10 से भी कम थी।

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एक तरफ OBC की संख्या में भारी वृद्धि हो गई, तो दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घट गई। उसके बाद बनी जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार ने 150 करोड़ खर्च कर बनी इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

पहली बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?

देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए।

1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।

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