साल 2009 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने बीटी बैंगन की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दी थी। लेकिन बड़े विरोध को देखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में इसको प्रतिबंधित कर दिया और इसके प्रभावों पर अध्य्यन शुरु किया।
और अब खाद्य तेलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके लिये तिलहनी फसलों की खेती का रकबा भी बढ़ाया जा रहा है। इसी कड़ी में अब जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती (Commercial farming of Mustard) के लिये मंजूरी दे दी है, जो किसानों के लिये एक अच्छी खबर है। बता दें कि जीएम सरसों यानी आनुवांशिक रूप से संसोधित सरसों की खेती से तेल का उत्पादन बढ़ाने में खास मदद मिलेगी।
वहीं स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने शुक्रवार को एक नियामक निकाय की उस सिफारिश का विरोध किया जिसमें आनुवंशिक रूप से संवर्धित (जीएम) सरसों को पर्यावरणीय परीक्षण के लिए जारी करने के लिए कहा गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े इस संगठन ने इस कदम को ‘खतरनाक’ करार देते हुए केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि इस फसल के बीज को कभी भी बोने की अनुमति नहीं दी जाए।
चालू रबी सीजन में ही जीएम सरसों का फील्ड ट्रायल शुरू हो जाएगा। इंडियन काउंसिल एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) के विज्ञानियों की देखरेख में देश के दर्जनभर विभिन्न रिसर्च सेंटरों पर अगले सप्ताह जीएम सरसों की बोआई हो जाएगी। कृषि क्षेत्र के थिंक टैंक ‘नास’ और ‘टास’ के विज्ञानियों ने सरकार की इस पहल का स्वागत करते हुए बताया ‘जीएम सरसों के किसानों के खेतों तक पहुंचाने में अभी दो से तीन साल लग सकते हैं। जीएम टेक्नोलाजी को लेकर सरकार की 20 वर्षों की नीतिगत पंगुता खत्म होने से कृषि क्षेत्र में क्रांति आ सकती है।’
नेशनल एकेडमी आफ एग्रीकल्चरल साइंस (नास) और ट्रस्ट आफ एडवांसमेंट आफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (टास) कृषि विज्ञानियों का एक शीर्ष संगठन है। यह थिंक टैंक कृषि क्षेत्र में नीतिगत सहयोग के साथ उन्नति के लिए काम करता है। लंबे समय से यह मुद्दा जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) में विचार के लिए लंबित था। 25 अक्टूबर को पर्यावरण मंत्रावय ने ट्रांसजेनिक हाईब्रिड सरसों को पर्यावरण की दृष्टि से उचित पाए जाने के बाद इसको मंजूरी प्रदान की है।
नास के अध्यक्ष त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि अब आइसीएआर इसकी उत्पादकता का परीक्षण करेगा। उन्होंने कहा आइसीएआर के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान संस्थान को जीएम सरसों के बीज सौंप दिए गए हैं, जिसे उसने अपने विभिन्न रिसर्च सेंटर भरतपुर, गंगानगर, बनारस, कानपुर और लुधियाना में बोआई के लिए भेज दिया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ कृषि विज्ञान केंद्रों पर भी इसकी बोआई की जा सकती है।
खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए आधुनिक टेक्नोलाजी का उपयोग सबसे जरूरी है। घरेलू जरूरतों के मुकाबले 65 प्रतिशत खाद्य तेलों का आयात किया जाता है, जिस पर लगभग सवा लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं। हमारे पास जीएम सरसों का बीज केवल 10 किलो है, जिसे बढ़ाने की दिशा में तत्काल कदम उठाने होंगे।
जीएम सरसों से मधुमक्खियों को खतरा नहीं
नास के सचिव केसी बंसल ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जीएम सरसों से मधुमक्खियों को कोई खतरा नहीं है। पंजाब और पूसा में परीक्षण किया जा चुका है। कनाडा में परीक्षण हो चुका है, जो पूरी तरह सुरक्षित है। यह खरपतवार मुक्त है। केवल बीज बढ़ाने वाली खेती में इसका प्रयोग होगा, जबकि किसानों की खेती में इसका प्रयोग जरूरी नहीं है। जीएम टेक्नोलाजी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मुक्त है।
जीएम टेक्नोलाजी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने बीटी कपास का जिक्र किया। उन्होंने कहा ‘भारत 2002 के पहले दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश था, जो बीटी कपास की खेती के बाद से दुनिया के प्रमुख निर्यातकों में हो गया है।’ बंसल ने कहा जीएम सरसों को अनुमति मिलने के बाद से हाईब्रिड सीड तैयार करने का रास्ता खुल जाएगा, जिससे उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
खाने और खेती के लिए पूरी तरह सुरक्षित
जीएम टेक्नोलाजी विज्ञानी एनके सिंह ने कहा कि जीएम टेक्नोलाजी क्षेत्र की नीति पंगुता समाप्त होने से कृषि क्षेत्र में क्रांति आएगी। सरकार ने इसके पहले जीनोम एडिटिंग की अनुमति देकर नया रास्ता खोला है। पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी से साफ हो गया कि पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है। खाने और खेती के लिए यह पूरी तरह सुरक्षित है। जीएम सरसों से अब अन्य उन्नतशील प्रजातियों को लेकर नया हाइब्रिड बीज तैयार किया जा सकता है। सरसों की घरेलू उत्पादकता किसी भी हाल में 1.3 टन से अधिक नहीं है, जिसे बढ़ाकर अधिकतम चार टन प्रति हेक्टेयर किया जा सकता है।
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