हाल ही में मोदी सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन लगाया था। अब पिछले करीब 6 सालों में पहली बार मोदी सरकार चीनी के निर्यात पर भी बैन लगाने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार ये कदम बढ़ती कीमतों को काबू में करने के लिए उठा रही है। निर्यात की वजह से कीमतें काबू से बाहर होने लगी हैं, जिसके चलते यह सख्त कदम उठाने की जरूरत पड़ रही है।
सरकार ने महंगाई की लपटें थामने के लिए देश से चीनी निर्यात पर 1 जून से पाबंदी लगाई गई है। इसके अलावा सरकार ने सालाना 20 लाख टन सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात पर सीमा शुल्क तथा कृषि उपकर में भी छूट दी है। अब तक कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर प्रभावी शुल्क 5.5 प्रतिशत था, जो मंगलवार को इन दो तेलों के लिए कटौती के बाद लगभग शून्य हो जाएगा। अप्रैल 2022 में देश में खुदरा महंगाई बढ़कर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई, जो पिछले 8 साल में सबसे अधिक है। इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है।
सरकार ने 13 मई को देश से गेहूं के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी थी। देश में अधिक से अधिक अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार पिछले एक सप्ताह से निर्यात के मोर्चे पर सख्ती करती जा रही है।
सूत्रों ने कहा कि छह साल में पहली बार सरकार चीनी निर्यात घटाकर 1 करोड़ टन पर ही थामना चाहती है। देश में चीनी का पर्यात भंडार बनाए रखने और देसी बाजार में इसकी कीमतें नियंत्रित करने के लिए यह कदम उठाया जा सकता है। भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत ने 2021-22 सत्र में करीब 85 लाख टन चीनी के निर्यात का अनुबंध किया था और 15 मई तक करीब 71 लाख टन चीनी का निर्यात हो भी चुका है।
चीनी उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने चीनी निर्यात कम करने की योजना पर कहा, ‘सरकार इस वर्ष सितंबर में समाप्त होने वाले चीनी सत्र तक पर्याप्त भंडार सुनिश्चित करना चाहती है ताकि दिसंबर तक देश में जरूरत पूरी करने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आए। सरकार ज्यादा सतर्क है क्योंकि चीनी की किल्लत हुई तो इसका आयात करना पड़ सकता है, जिससे महंगाई और बढ़ जाएगी। दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश होने पर भी चीनी आयात की तो देश की साख भी खराब हो सकती है।’ अधिकारी ने कहा कि देश में इस समय चीनी का अनुमानित उत्पादन 3.55 करोड़ टन है, जो पिछले अनुमान 3.1 करोड़ टन से अधिक है। एथेनॉल मिश्रण जरूरी किए जाने के बाद सितंबर 2022 तक भारत में 60-65 लाख टन चीनी का ही भंडार शेष रह जाएगा। इस लिहाज से चीनी का निर्यात 1 करोड़ टन पर ही रोकना जरूरी है। भारत में हर महीने 20-25 लाख टन चीनी की खपत होती है।
चीनी उद्योग के एक अन्य प्रतिनिधि ने कहा, ‘सरकार देश में चीनी भंडार समुचित स्तर पर रखने के लिए इसका निर्यात कम करना चाहती है तो कि ऊंची कीमतों पर इसका आयात करने की नौबत नहीं आए।’ उन्होंने कहा कि चीनी निर्यात का आंकड़ा 85 लाख टन के बजाय 90 लाख टन तक पहुंचा तो सरकार कारोबारियों को पंजीकरण के लिए कह सकती है ताकि निर्यात पर अंकुश लगाया जा सके।
कारोबारियों का कहना है कि निर्यात सीमित होने पर बाजार में चीनी की कीमतें फौरन 50 पैसे प्रति किलोग्राम कम हो सकती हैं और बाद में सामान्य स्तर पर आ जाएंगी। एस-ग्रेड चीनी की एक्स-मिल कीमत इस समय 32-33 रुपये प्रति किलो है और एम-ग्रेड चीनी का एक्स-मिल भाव 34-35 रुपये है।
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