Azamgarh : उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने सारे कयासों पर विराम लगा दिया है। मिली जानकारी के अनुसार, सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे स्व. बलिहारी बाबू के पुत्र सुशील आनंद को प्रत्याशी बना सकते हैं। बस कुछ ही देर में इसकी आधिकारिक घोषणा हो सकती है।
हालांकि शुक्रवार को इसके लिए पार्टी की ओर से किसी को फार्म बी जारी नहीं किया गया है पर माना यह जा रहा है कि सुशील के नाम पर आलाकमान मुहर लगा चुका है। अभी तक इस सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए अखिलेश यादव की पत्नी व पूर्व सांसद डिंपल यादव (Dimple Yadav) के नाम की चर्चा जोरों पर चल रही थी।
आखिर कौन हैं सुशील आनंद?
Azamgarh : सपा अभी तक इस सीट पर डिंपल यादव अथवा रमाकांत यादव को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही थी। बताया जा रहा है कि रमाकांत ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया और उन्होंने बदली सियासी परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी नेतृत्व के सामने यहां से दलित उम्मीदवार उतारने का प्रस्ताव रखा। इस पर बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद का नाम पहले स्थान पर लिया जा रहा है। बलिहारी बाबू बामसेफ के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे हैं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि जल्द ही सूची सार्वजनिक की जाएगी। कई नामों पर विचार चल रहा है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि दलित उम्मीदवार के जरिए यादव और मुस्लिम वोट बैंक की एकजुटता बरकरार रखने के साथ ही दलित वोट बैंक को भी जोड़ने की कोशिश की जा सकती है। हालांकि बसपा गुड्डू जमाली को मैदान में उतारकर मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की रणनीति पहले ही अपना चुकी है। साथ ही बसपा का भी यहां दलित मुस्लिम फार्मूले पर ही तगड़ा भरोसा है।
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समाजवादी पार्टी विधान सभा चुनाव के हार के कारणों की शनिवार को समीक्षा करेगी। सभी हारे हुए प्रत्याशियों और जिलाध्यक्षों को सुबह 11 बजे पार्टी कार्यालय बुलाया गया है। सभी को कारणों पर अपनी रिपोर्ट देनी होगी।
Azamgarh : बता दें कि बलिहारी बाबू बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के खासमखास रहे हैं। बसपा ने उनको 2006 में राज्यसभा भी भेजा था, लेकिन बिना कार्यकाल पूरा किए ही 2009 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बलिहारी बाबू ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।
2012 में विधानसभा, 2014 में संसदीय चुनाव में लालगंज सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन पराजित हो गए। वहीं, 2017 में बसपा सुप्रीमो मायावती के कहने पर फिर से हाथी पर सवार हो गए, लेकिन वापसी के बाद वह ओहदा नहीं रहा और पार्टी में अनदेखी की वजह से उन्होंने 2020 में समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली थी।
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