बैलों को वश में करने के खेल जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मौलिक प्रश्न यह है कि इस खेल को किसी भी प्रारूप में अनुमति दी जा सकती है या नहीं, जिसे कई लोग पशुओं के साथ क्रूरता मानते हैं। मालूम हो कि इस खेल का आयोजन राज्य में पोंगल पर्व पर किया जाता है।
आज भी होगी बहस
कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ से कहा कि पशुओं के प्रति क्रूरता की किसी भी गतिविधि को मंजूरी की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस दौरान पीठ ने कहा, तमिलनाडु सरकार का कहना है कि ये बैल प्रशिक्षित होते हैं और उनके साथ बेहद प्रेम का व्यवहार किया जाता है। इस मामले पर बुधवार को पूरे दिन बहस हुई जो शाम 5.30 बजे तक चली। बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।
संविधान पीठ ने कहा, हमारे हिसाब से अंतिम सवाल शायद यह हो सकता है कि क्या ‘जल्लीकट्टू’ किसी भी रूप में मनाया जा सकता है, क्या किसी भी रूप में इसकी अनुमति दी जा सकती है या क्या किसी भी रूप में ‘जल्लीकट्टू’ की अनुमति नहीं दी जा सकती है।’’ संविधान पीठ के अन्य सदस्य हैं- न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार।
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु सरकार की दलील है कि इन सांडों को प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें काफी स्नेह दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने अपने 2014 के फैसले में कहा था कि सांडों को जल्लीकट्टू कार्यक्रमों या बैलगाड़ी दौड़ में शामिल होने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और देश भर में इन उद्देश्यों के लिए उनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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