भारतीय युवाओं की औसत उम्र है 28… लेकिन क्या आबादी में चीन को पछाड़कर हमें खुश होना चाहिए?

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हाल ही में आए रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है भारत. देश की आबादी 142.86 करोड़ हो गयी है और वह चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन गया है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत ने इस मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है और सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है. वैसे, चीन ने इस रिपोर्ट को अधिक तवज्जो नहीं दी है और उसका मानना है कि वह अब भी सर्वाधिक गुणवत्ता वाले मानव संसाधन वाला देश है. इधर भारत में भी जनसंख्या के फायदे-नुकसान को लेकर बहस शुरू हो गई है।

India will beat china in population next year | 1 दिन बाद 8 अरब हो जाएगी दुनिया की आबादी, एक सर्वे ने बढ़ाई चीन की चिंता! | Hindi News,

लेकिन कठोर नीतियों और कड़े प्रतिबंधों के चलते उसकी जन्म दर नाटकीय ढंग से धीमी हो गई जिससे भारत आगे निकल गया। लेकिन जनसंख्या के आंकड़े में अव्वल होना किसी उपलब्धि से ज्यादा चिंता की बात है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले जनसंख्या विस्फोट को लेकर चिंता व्यक्त की थी। किसी भी देश की आबादी बढ़ने या घटने के पीछे उसकी प्रजनन क्षमता होती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि एक देश की औसत प्रजनन दर जनसंख्या को बनाए रखने के लिए, प्रति महिला बच्चे, 2.1 होनी चाहिए। 1960 के दशक में भारत की प्रजनन दर 6 थी, लगभग उतनी ही जितनी आज कुछ अफ्रीकी देशों में है। यूएन के अनुसार, भारत अब एक ‘बढ़ती उम्र वाला देश’ है जिसका मतलब है कि इसकी 7 फीसदी आबादी 65 या उससे ज्यादा उम्र की है।

धीमी हो रही भारत की जनसंख्या वृद्धि दर

भारत ने भले कुल आबादी में चीन को पीछे छोड़ दिया हो लेकिन अब उसकी वृद्धि दर धीमी हो गई है। 1971 और 1981 के बीच भारत की जनसंख्या हर साल औसतन 2.2 प्रतिशत बढ़ रही थी। 2001 से 2011 तक यह 1.5 प्रतिशत तक धीमी हो गई और अब और भी कम है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2064 में भारत की जनसंख्या करीब 1.7 अरब होने की उम्मीद है। अभी देश के 40 फीसदी से अधिक लोग 25 साल से कम उम्र के हैं और 2023 में अनुमानित औसत आयु 28 है जो चीन की तुलना में करीब एक दशक कम है।

बढ़ती आबादी, बढ़ती चुनौतियां

जनसंख्या बढ़ने से देश के लिए चुनौतियां भी बढ़ सकती हैं। भारत की एक बड़ी आबादी के लिए गरीबी एक गंभीर समस्या है जो आबादी बढ़ने के साथ और गहरा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश की बड़ी आबादी में ऐसे युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है जो काम करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं लेकिन सभी के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च की एक सीनियर विजिटिंग फेलो सबीना दीवान कहती हैं कि आर्थिक विकास ‘अच्छी गुणवत्ता, उत्पादक और अच्छे पारिश्रमिक वाली नौकरियां देने पर टिका होता है।’

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