क्या है PFI का इतिहास? जिसके खिलाफ लगातार हो रहे ताबड़तोड़ छापे, कई बार संगठन को प्रतिबंधित करने उठ चुकी है मांग

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राष्ट्रीय एजेंसियों का शिकंजा लगातार पीएफआई पर कसता जा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और ED ने मंगलवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कई ठिकानों पर छापेमारी की। दिल्ली के शाहीन बाग में NIA ने रेड करके PFI से जुड़े 30 लोगों को हिरासत में लिया है। शाहीन बाग में इस एक्शन के बाद केंद्रीय पुलिस फोर्स को तैनात कर दिया गया है। वहीं महाराष्ट्र से 15, कर्नाटक के कोलार से 6 और असम से 25 PFI कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया है। NIA और 9 राज्यों की ATS एक साथ एक्शन में है।

NIA, ED, state police raid PFI-SDPI leaders in 13 states for terror activities | Latest News India - Hindustan Times

वहीं असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र और दिल्ली समेत कई राज्यों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं के घर पर पुलिस की छापेमारी चल रही है। इस कार्रवाई में 247 लोग हिरासत में लिए गए हैं।  उत्तर प्रदेश में 44 लोगों को हिरासत में लिया गया है, कर्नाटक में 72 लोगों को, असम में 20 लोगों को, दिल्ली में 32 को, महाराष्ट्र में 43 को, गुजरात में 15 को, एमपी में 21 लोगों को हिरासत में लिया गया है. पीएफआई पर ये कार्रवाई जारी है। हिरासत में लिए गए लोगों की तादाद और बढ़ने की संभावना है।

PFI protest in Pune: Police probe if 'Pakistan Zindabad' slogans were raised, govt vows action | Cities News,The Indian Express

कुछ दिनों पहले ही हुए कानपुर हिंसा और बवाल के मामले की साजिश में भी पीएफआई का हाथ था। ये  सभी आरोपी इससे पहले सीएए हिंसा में जेल जा चुके हैं।  PFI का लव-जिहाद, जबरन धर्म परिवर्तन, आईएस के लिए आतंकी भेजने, अरब देशों से फंड जुटाने के मामलों में भी कनेक्शन मिल चुका है।

क्या है पीएफआई और इसका इतिहास

साल 2006 में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की नींव रखी गई। नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के रूप में इसका जन्म हुआ। फिर इसमें कई अन्य मुस्लिमों संगठनों जैसे मनीथा नीति पासारी, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, राष्ट्रीय विकास मोर्चा और अन्य संगठन का इसमें विलय हो गया। जिसके बाद इसे पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से पहचाना गया।

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पीएफआई के बनने का औपचारिक ऐलान 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में हुई एक रैली “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान किया गया था।

दरअसल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिण भारत के कई राज्यों में मुस्लिम संगठन उभकर सामने आए। इनमें कई संगठनों को मिलाकर पीएफआई बना। हालांकि स्थापना के बाद से ही ये संगठन सवालों के घेरे में रहा है। देश के कई राज्यों में इस पर बैन है। संगठन पर देश विरोधी गतिविधियों में भी लिप्त रहने का आरोप लगता रहा है। इसके कई कार्यकर्ताओं और नेताओं को ऐसे कई मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका है।

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क्या है PFI का असल मकसद

ये सगंठन खुद को नए सामाजिक आंदोलन के अगुवा के रूप में वर्णित करता है, जो लोगों को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रीय महिला मोर्चा (NWF) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) सहित संगठन की कई और शाखाएं हैं।

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अपने 16 साल के इतिहास में पीएफआई दावा करता है कि उसकी देश के 23 राज्यों में इकाइयां है। संगठन देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है। और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है जिससे उसे अच्छी-खासी फंडिंग मिलती है। पीएफआई का मुख्यालय कोझीकोड में था, लेकिन लगातार विस्तार के कारण इसका सेंट्रल ऑफिस राजधानी दिल्ली में खोल दिया गया।

पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ई अबुबकर हैं जो केरल से ताल्लुक रखते हैं। यह संगठन खुद को अल्पसंख्यक समुदायों, दलितों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के लोगों को सशक्त बनाने का काम करने का दावा करता है।

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मगर इसकी विचारधारा के इतर संगठन पर कई गंभीर आरोप भी लगे हैं। इस पर देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की दिशा में काम करने का आरोप है। संगठन के कुछ छिपे हुए खतरनाक एजेंडे होने का भी आरोप है जो देश के लिए नुकसानदेह है। हालांकि पीएफआई के नेता लगातार खुद पर लगे आरोपों को नकारते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताते रहे हैं।

PFI के काम करने का तरीका क्या है?

पीएफआई ने खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएफआई, दक्षिणपंथी समूहों की तरह, अपने सदस्यों के रिकॉर्ड नहीं रखता है।

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2009 में, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) नाम का एक राजनीतिक संगठन PFI से निकला, जिसका उद्देश्य मुसलमानों, दलितों और अन्य हाशिए पर खड़े समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाना था। एसडीपीआई का कहना है कि उसका टारगेट “मुसलमानों, दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों का विकास” है और “सभी नागरिकों के बीच उचित रूप से सत्ता साझा करना” है।

कर्नाटक में राजनीतिक रूप से PFI/SDPI कितना सफल?

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का असर मुख्य रूप से बड़ी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में है। एसडीपीआई ने तटीय दक्षिण कन्नड़ और उडुपी में अपना प्रभाव जमाया है, जहां वह गांव, कस्बों और नगर परिषदों के लिए स्थानीय चुनाव जीतने में कामयाब रही है। 2013 तक एसडीपीआई ने केवल स्थानीय चुनाव लड़ा था और राज्य के आसपास के 21 नागरिक निर्वाचन क्षेत्रों में सीटें जीती थीं।

केरल सरकार का पीएफआई पर आरोप

साल 2012 में ओमन चांडी की अध्यक्षता वाली कांग्रेस की केरल सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के जैसा ही एक ऑर्गनाइजेशन है। सरकारी हलफनामे में कहा गया है कि पीएफआई के कार्यकर्ता हत्या के 27 मामलों में शामिल थे।

BJP is doing politics on NRC issue instead of resolving it says Chandy - India TV Hindi News

 

इसके दो साल बाद केरल सरकार ने एक अन्य हलफनामे में हाईकोर्ट को बताया कि पीएफआई का एक गुप्त एजेंडा इस्लाम के लाभ के लिए धर्मांतरण, मुद्दों के सांप्रदायिकरण को बढ़ावा देकर समाज का इस्लामीकरण करना है।

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