नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को क़ानूनी मान्यता दिलाने की मांग हो रही है। समलैंगिक विवाह यानी पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता देना चाहिए या नहीं, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है। एक तरफ केंद्र सरकार विरोध में है तो वहीं याचिकाकर्ताओं ने इसे अपना ‘मौलिक अधिकार’ बताया है। समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने के मामले में बार-बार स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की चर्चा हो रही है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में बदलाव किया जाए। आखिर स्पेशल मैरिज एक्ट होता क्या है और समलैंगिक शादी को लेकर इसमें बदलाव करने की मांग क्यों की जा रही है?
क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत दो अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोग शादी कर सकते हैं। 9 अक्टूबर, 1954 को संसद द्वारा इस अधिनियम को पारित किया गया था। इस कानून के जरिए भारत के हर एक नारगिक को किसी भी धर्म या जाति में शादी करने का संवैधानिक अधिकार होगा। बता दे कि स्पेशल मैरिज के तहत लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए। भारत में जोड़ो की शादी हो जाने के बाद इस पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इस एक्ट के तहत शादी करने के लिए धर्म बदलने की जरूरत नहीं होती है। बिना धर्म परिवर्तन किए या अपनी धार्मिक पहचान गंवाए ही दो अलग धर्म के लोग शादी कर सकते हैं। इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, शामिल हैं।
स्पेशल मैरिज एक्ट के क्या है नियम
स्पेशल मैरिज एक्ट नियम के तहत किसी भी पक्ष का पहले से ही कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। कोई भी पक्ष मानसिक तौर पर शादी के लिए जायज सहमति देने की स्थिति अक्षम नहीं होना। इसमें कोई भी पक्ष मानसिक विकार से पीड़ित ना हों जिससे वे विवाह के लिए अयोग्य हो जाए।
30 दिनों का मिलेगा नोटिस
विवाह करने वाले पक्षों को कानून की धारा 5 के तहत एक लिखित नोटिस अपने जिले के मैरिज ऑफिसर को देना होता है। इस लिखित नोटिस के तहत एक पक्ष एक महीने से उस जगह का निवासी होना चाहिए। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 30 दिनों का अनिवार्य नोटिस दोनों ही पक्षों को जारी किया जाता है। 30 दिनों में अगर किसी भी पक्ष को शादी से आपत्ति है तो उसकी जांच होगी। धारा 4 के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं पाया गया तो फिर शादी की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें दोनों ही पक्षों की उपस्थित आवश्यक होती है और तीन गवाहों का भी रहना आवश्यक होता है। इसके बाद मैरिज ऑफिसर सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करते हैं, जिसके बाद दो अलग-अलग धर्मों के जोड़ों की शादी को आधिकारिक मान्यता मिल जाती है।
समलैंगिक विवाह में बदलाव क्यों?
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल मैरिज एक्ट की चर्चा हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी की कानूनी उम्र में बदलाव किया जाए। समलैंगिक विवाह, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ही रजिस्टर होनी चाहिए। समलैंगिक विवाह के मामले में देखा जाए तो पुरुष की पुरुष से शादी होती है तो उम्र 21 साल और स्त्री की स्त्री से शादी होती है तो 18 साल उम्र तय की जाए। स्पेशल मैरिज एक्ट में ‘पुरुष और महिला की शादी’ की बात कही गई है, जिसे बदलकर ‘व्यक्ति’ लिखे जाने की मांग की गई है।
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