Karwa Chauth 2022 : पति की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत करवा चौथ कल यानी गुरुवार को है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
करवा चौथ का पर्व देशभर में पूरे विधि विधान और धूमधाम से मनाया जाता है। व्रत को लेकर बाजार में भी रौनक है। सुहागिने व्रत के दिन निर्जला रहती हैं और रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत खोलती है।
करवा चौथ 2022: तिथि और शुभ मुहूर्त
तिथि: चतुर्थी
पक्ष: कृष्ण पक्ष
माह: कार्तिक
दिन: गुरुवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 05 बजकर 54 मिनट से 07 बजकर 03 मिनट तक
अवधि: 1 घंटा 09 मिनट
चंद्रोदय: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 08 बजकर 10 मिनट पर
करवा चौथ 2022 का महत्व
हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए करवा चौथ का विशेष महत्व है। महिलाएं ये व्रत अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से रखती हैं। इस दिन महिलाएं अन्न और जल ग्रहण नहीं करतीं। रात के समय चांद निकलने के बाद छलनी में चांद देखकर अपना व्रत खोलती हैं। करवा चौथ के दिन चौथ माता के साथ भगवान शिव व पार्वती का भी पूजन किया जाता है।
पूजाविधि
इस दिन सुहागिन स्त्रियां सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लेती हैं और सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करती हैं। सरगी में मिठाई,फल,सैंवई,पूड़ी और साज-श्रृंगार का सामान दिया जाता है। इसके बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है,जो महिलांए निर्जल व्रत ना कर सके वह फल,दूध,दही,जूस,नारियल पानी ले सकती हैं।
व्रत के दिन शाम को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं,इस पर भगवान शिव,माता पार्वती,कार्तिकेय,गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर दें अन्यथा शिव परिवार की तस्वीर भी रख सकते हैं। एक लोटे में जल भरकर उसके ऊपर श्रीफल रखकर कलावा बांध दें व दूसरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्लड़(करवा) लेकर उसमें जल भरकर व ढक्कन में शक्कर भर दें,उसके ऊपर दक्षिणा रखें,रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद धूप,दीप,अक्षत व पुष्प चढाकर भगवान का पूजन करें,पूजा के उपरांत भक्तिपूर्वक हाथ में गेहूं के दाने लेकर चौथमाता की कथा का श्रवण या वाचन करें। तत्पश्चात् रात्रि में चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रदेव को अर्ध्य देकर बड़ों का आशीर्वाद लें।
करवा चौथ व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शिवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं।
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