देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 22 दिसंबर को 102वीं जयंती मनाई जा रही है |रामानुजन के योगदान को याद करने के लिए प्रत्येक साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है |वर्ष 2012 में भारत सरकार ने दिग्गज गणितज्ञ रामानुजन के सम्मान में उनके जन्मदिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाए जाने का ऐलान किया था |राष्ट्रीय गणित दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि गणित के महत्व को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है |राष्ट्रीय गणित दिवस के अवसर पर स्कूल और कॉलेजों में गणित की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है |स्टूडेंट्स को गणित के क्षेत्र में शोध के लिए प्रेरित किया जाता है |
1. गणित के बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते. आपके आस-पास सब कुछ गणित है. आपके आस-पास सब कुछ संख्याएँ हैं.
2. गणित के कुछ आसान नियम के मुताबिक अनुसार कागज पर अर्थहीन अंकों के साथ खेला जाने वाला खेल है.
3. गणितज्ञों ने सापेक्षता के सिद्धांत पर आक्रमण किया है. इसी वजह से अब इसे स्वयं नहीं समझा जाता.
4. गणित विषय मानव आत्मा की सबसे सुंदर और सबसे शक्तिशाली रचना है.
5. गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है. एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी.
कौन हैं श्रीनिवास रामानुजन
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को मद्रास (चेन्नई) से 400 किमी दूर ईरोड में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता श्रीनिवास अय्यंगर और मां कोमल तम्मल थीं. उन्हें बचपन से गणित प्रिय था. 12 साल की उम्र में वे ट्रिग्नोमेट्री में दक्ष हो गये थे, मात्र 15 साल की उम्र में एप्लाइड मैथ में जॉर्ज शोब्रिज करके सिनोप्सिस ऑफ एलीमेंट्री रिजल्ट की प्रति प्राप्त की. उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया. 1904 में गणित में विशेष योगदान पर उन्हें रंगनाथ राव पुरस्कार मिला. 1908 में उनका विवाह जानकी से हुआ था.
इनका बचपन काफी गरीबी में गुजरा था. वह मित्रों से उधार पुस्तक लेकर पढ़ते थे. आर्थिक जरूरतों के लिए मद्रास ट्रस्ट पोर्ट के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी की. नौकरी के दरम्यान खाली वक्त में वह गणित के प्रश्न हल करते थे. एक बार एक अंग्रेज ने उनके पत्रों को पढ़ा तो काफी प्रभावित हुए. उन्होंने रामानुजन को पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय भेजा. रामानुजन से प्रभावित होकर रॉयल सोसायटी ने साल 1918 में उन्हें फैलोशिप से सम्मानित किया. यह सम्मान पाने वाले रामानुजन एशिया के पहले व्यक्ति थे. उनके संख्या सिद्धांत पर अद्भुत कार्य के कारण उन्हें ‘संख्याओं का जादूगर’ कहा जाता था. 26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 वर्ष की आयु में कुंभनम में उनका निधन हो गया.
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