वाल्मीकि जयंती (Valmiki Jayanti 2022) का त्योहार महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने महान हिंदू महाकाव्य रामायण को लिखा था. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह अश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ता है। जो इस साल वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
डकैत से कैसे बने संत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रत्नाकर पहले वन में आने वाले लोगों को लूट कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार उसकी मुलाकात पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आएं नारद मुनि से हुई। रत्नाकर ने नारद मुनि को लुटने के इरादे से पकड़ लिया। जिसे देखकर नारद मुनि ने पूछा ‘तुम यह क्या और क्यों कर रहे हो’ जवाब में रत्नाकर ने कहा- यह मेरी आय का स्रोत है।
इसकी मदद से मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूं। नारद मुनि ने उससे पूछा कि तुम्हें इसके परिणाम के बारे में पता है और क्या तुम्हारे परिवार के सदस्य इस दुष्परिणामों में तुम्हारी मदद करेंगे। जिसके जवाब में रत्नाकर ने बोला – क्यों नहीं वह मेरा परिवार है और वह मेरे साथ हमेशा खड़ा रहेगा। तभी नारद मुनि ने कहा – घर जाकर अपने परिवार के सदस्यों से उनके विचार जानने की कोशिश करो।घर पंहुचने के बाद रत्नाकर ने परिवार के सभी सदस्यों से पूछा- क्या आप लोग मेरे दुष्कर्म में मेरा साथ देंगे। परिवार के सभी सदस्यों ने साथ देने से इंकार कर दिया।
जिसके बाद रत्नाकर को अपने बुरे कामों के प्रति बहुत ग्लानि महसूस हुई। जिसके बाद रत्नाकर ने सत्कर्म का मार्ग अपनाने का मन बना लिया कहा जाता है।
वाल्मीकि समाज की उत्पति
इस समुदाय या संप्रदाय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर पड़ा है.इस समुदाय या संप्रदाय के सदस्य संस्कृत रामायण और योग वशिष्ठ जैसे ग्रंथों के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के वंशज होने का दावा करते हैं. यह महर्षि वाल्मीकि को अपना गुरु और ईश्वर का अवतार मानते हैं।
![Valmiki Jayanti 2021: History, significance and all you need to know](https://media.news9live.com/h-upload/2021/10/20/40626-valmiki-jayanti.jpg)
वाल्मीकि समाज का इतिहास
उत्तर भारत में पाए जाने वाले इस समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से सीवेज क्लीनर और स्वच्छता कर्मी के रूप में कार्य करते आए हैं. ऐतिहासिक रूप से इन्हें जातिगत भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. हालांकि, शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर अब यह अपने परंपरागत कार्य को छोड़कर अन्य पेशा भी अपनाने लगे हैं. इससे इनकी समाजिक स्थिति में सुधार हुई है।
वाल्मीकि समाज की जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में यह अनुसूचित जाति की आबादी का 11.2% थे और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में यह दूसरी सबसे अधिक आबादी वाली अनुसूचित जाति थी. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश मेंअनुसूचित जाति की कुल आबादी 13,19,241 दर्ज की गई थी।
सीवर लाइन में उतरने वाले वाल्मीक लोगों की दशा
सोचिए जरा कि बजबजाते और बदबू देते नालों से रिस रहा काला पानी अगर आपके पैरों को छू जाए या किसी कारण वश आपको इन नालों से निकल रहे गार में उतरना पड़े तो क्या हो? आप कहेंगे ये पहली लाइन कितनी गंदी या घिनही है। शायद ये बात सोचकर ही आपको उबकाई आ जाए। लेकिन ये रिपोर्ट जिन लोगों पर है उनकी दशा बताने और आपके जेहन को उस काबिल बनाने के लिए ये लाइन लिखी गई है। हम बात उन सीवर कर्मचारियों की करेंगे जो रोजाना अपनी जान पर खेलते हुए गैस चेंबर से भी बदतर सीवर लाइनों में उतरते हैं। आईये जानते है सरकार के द्वारा इनके लिए क्या किया गया है।
शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें सीईएनएस के डॉ चन्नबसवेश्वर येलामगाड और किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (केएयूएसटी) से प्रोफेसर खालिद एन. सलामा और उनके सहयोगियों ने सीवर में जहरीली गैसों के बारे में पता लगाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण विकसित किया है। जिसे इलेक्ट्रॉनिक नाक भी कह सकते है, जो एक तरह का सेंसर है।
यह सेंसर सीवरों में उत्पन्न होने वाली जहरीली और ज्वलनशील गैस जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड का पता लगा सकता है। हाइड्रोजन सल्फाइड, आँक्सीजन की अनुस्पस्थिति में कार्बानिक पदार्थों से उत्पन्न होने वाली पहली गैस है, जो अक्सर सीवर और दलदली इलाकों में पायी जाती है।
इस सेंसर को बेंगलूरू स्थित सेंटर फॉर नैनो ऐंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने सऊदी अरब के सहयोग से तैयार किया है। इस सेंसर की मदद से सीवर साफ करने के दौरान अक्सर सफाई कर्मचारियों की होने वाली मोतों को रोकने में मदद मिल सकती है।
इस सेंसर में दो परते होती हैं, सेंसर की ऊपरी परत पर एक अणु जो पॉलीमर बनाने के लिए अन्य समान अणुओं से बंध सकता है, जिसे मोनोमर कहते है। साथ ही इस परत में छेद होते हैं और हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु इसमें पहले से ही मौजूद होते है।
मोनोमर वे अणु होते हैं, जो अपने जैसे अणुओ की पहचान करके उनसे रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। वहीं सेंसर की निचली परत में मौजूद गैस की गतिशीलता को प्रदर्शित करती है। इस प्रकार यह सेंसर हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) के अणुओं को पहले से केंद्रित कर रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू करता है, जिसके कारण उपकरण के छेदों में बदलाव होता है।
यह सेंसर अपने आसपास हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) गैस का पता लगा सकता है। प्रायोगिक सीमा में यह अति संवेदनशील सेंसर 100 करोड़ के लगभग 25वें भागों का पता लगा सकता है।यह सेंसर उच्च गुणवत्ता और क्षमता के साथ लगभग 8 महीने तक काम कर सकता है। यह जानकारी इंडिया साइंस वायर के द्वारा उपलब्ध कराई गई है।
लेकिन एक आंकड़ा जानें कि यह किट कितने कर्मचारियों में अब तक वितरित की गयी है, तो इसके बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नही हो पायी है।
सीवर की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों के मौत के मामले
आप गूगल पर ‘जहरीली गैस से सीवर कर्मचारी की मौत’ लिखकर सर्च करेंगे तो देश भर से कई खबरें मिला जाएंगी, लेकिन ज्यादातर में कर्मचारियों या मजदूरों के नाम और पते दर्ज नहीं होंगे। यानी कि ये सभी मौतें हमारे और आपके लिए गुमनाम हैं। क्योंकि इन मौतों का असर सिर्फ और सिर्फ इनके परिवार तक सिमित रहता है। इन सीवर कर्मचारियों और मजदूरों की जान की कीमत कितनी सस्ती है इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि सरकार के पास भी स्पष्ट आंकड़ा नहीं है।
कि सीवर सफाई के दौरान कितने कर्मचारियों या मजदूरों की जान गई है। 21 सितम्बर 2017 को सेक्टर 110 में सीवर की सफाई करने उतरे तीन मजदूरों की जहरीली गैस की वजह से दम घुटने से मौत हो गई। 28 मई 2021 को थाना सूरजुपुर क्षेत्र के बेगमपुर में सीवर लाइन में उतरे सफाई कर्मी की दम घुटने से मौत हो गई। 16 अक्तूबर 2021 को थाना सेक्टर 58 क्षेत्र में सीवर में सफाई करने उतरे दो सफाई कर्मचारियों की जहरीली गैस में दम घुटने से हुई। जब सरकार से इसका बियौरा मांगा गया तो उनके पास इनके नाम पता कोई भी जानकारी नही मिल पायी उनका कहना की सरकार इस पर काम कर रही है।
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