वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के पहले सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क (Sovereign Green Bonds Framework) को मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के साथ ही पेरिस समझौते के लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगा जिससे ग्रीन प्रोजेक्ट्स में वैश्विक और घरेलू निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी कर जुटाये जाने वाले रकम को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (Carbon Intensity) को कम करने में मदद करेंगी।
भारत सरकार के पहले ग्रीन बॉन्ड सौर ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करेंगे, इसके बाद पवन और छोटी जलविद्युत परियोजनाएं होंगी। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की स्वच्छ परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए घरेलू बाजार पर नजर है।
बता दें, पहली बार ग्रीन बॉन्ड का एलान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से चालू वित्त वर्ष का बजट पेश करते समय किया गया था। उन्होंने कहा था कि सरकार सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करने की तैयारी में है। ऐसे में लोगों के मन में ये बड़ा सवाल उठता है कि आखिर ये ग्रीन बॉन्ड क्या है और इसका क्या इस्तेमाल होगा, जिसके बारे में हम अपने इस लेख में बताने जा रहे हैं।
क्या है ग्रीन बॉन्ड? (What is Green Bonds?)
ग्रीन बॉन्ड एक तरह का निवेश है, जिसमें निवेशकों को एक फिक्स्ड ब्याज दिया जाएगा। इसे सरकार की ओर से इससे मिलने वाले पैसे का उपयोग कार्बन उत्सर्जन कम करने वाली योजनाओं के लिए किया जाएगा। यह बॉन्ड एसेट लिंक होंगे। एसेट लिंक बॉन्ड निवेशकों के बीच में काफी लोकप्रिय होते हैं, इस कारण सरकार के लिए भी इन बॉन्ड पर पैसा जुटाना आसान होता है। एसेट लिंक होने के कारण इन बॉन्ड को सुरक्षित माना जाता है। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए इस पर सरकार की ओर से टैक्स छूट और टैक्स क्रेडिट भी दिया जाता है।
जल्द जारी हो सकते हैं ग्रीन बॉन्ड
बात दें, सितंबर के आखिर में वित्त मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी कर कहा गया था कि सरकार जल्द ग्रीन बॉन्ड जारी करने को लेकर एक फ्रेमवर्क लेकर आएगी और इसके साथ ही भविष्य में इसे कब-कब जारी किया जाएगा, इसकी रूपरेखा के बारे में बताया जाएगा। आगे बताया गया कि सरकार का लक्ष्य 16,000 करोड़ के ग्रीन बॉन्ड जारी करना है।
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