Pakistan में सातवीं जनगणना के दौरान हिन्दुओं को लेकर चल रहा है विवाद, जानिए क्या है असल वजह

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पाकिस्तान दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. 2017 में हुई जनगणना के मुताबिक़ पाकिस्तान की आबादी 20.7 करोड़ है. हालांकि वास्तविक आबादी इससे ज़्यादा होने की उम्मीद है। देश में सातवीं जनगणना की प्रक्रिया चल रही है. यह प्रक्रिया एक मार्च, 2023 से शुरू हुई है. इसके 10 अप्रैल तक पूरा होने की उम्मीद जताई गई थी।

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पाकिस्तान के इतिहास में ये पहला मौका है जब देश की आबादी और इससे संबंधित दूसरे रुझानों को जानने के लिए डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. वैसे ऐतिहासिक तौर पर पाकिस्तान में जनगणना हमेशा विवादों में रहा है. सातवीं जनगणना भी कोई अपवाद नहीं है। मौजूदा जनगणना में अन्य चीज़ों से जुड़े विवाद तो हैं ही, साथ ही इसने देश की हिंदू आबादी के बीच एक बहस छेड़ दी है।

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क्या है विवाद?

पाकिस्तान में जनगणना का काम पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो के अधीन है. सांख्यिकी ब्यूरो ने जो फॉर्म बांटे हैं उसमें हिंदू और अनुसूचित जातियों को अलग अलग समूह के तौर पर दर्ज किया गया है।

पाकिस्तान में पहले भी हिंदुओं की जनगणना इसी आधार पर होती रही है. लेकिन इस बार हिंदुओं की ओर से मांग की जा रही है कि सभी जाति के लोगों की गिनती एक साथ होनी चाहिए।

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पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को आबादी के आधार पर सुविधाएं और आरक्षण मिलता है, जिसमें संसद की आरक्षित सीटें एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण शामिल है. यही वजह है कि पाकिस्तान के सवर्ण हिंदुओं की मांग है कि अनुसूचित जाति के साथ गिनती से समुदाय को फ़ायदा होगा।

अनुसूचित जाति के हिंदुओं की आबादी दूसरे समुदायों की तुलना में ज़्यादा है. ऐसे में सवर्ण हिंदुओं का मानना है कि सामूहिक आवाज़ कहीं ज़्यादा दमदार और मजबूत होगी. इन दोनों को अलग अलग वर्गों में रखना पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए फ़ायदेमंद नहीं है।

हिंदुओं के बीच मतभेद

लेकिन हिंदुओं के दूसरे समुदायों के साथ मिलाकर गणना किए जाने का अनुसूचित जाति के कुछ लोग विरोध भी कर रहे हैं। सामूहिक जनगणना का विरोध करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों का मानना है कि बहुसंख्यक होने के बाद भी अतीत में उन पर ब्राह्मण और ठाकुरों का शासन रहा और उनको अछूत माना गया। उनका मानना है कि दोनों वर्गों को साथ मिलाने से उन्हें किसी तरह का लाभ नहीं होगा।

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पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण हासिल है. जबकि पाकिस्तान की संसद में दस सीटें आरक्षित हैं. संसद के ऊपरी सदन में चार सीटें आरक्षित हैं और पाकिस्तान के प्रांतों की विधानसभाओं में कुल मिलाकर 23 सीटें आरक्षित हैं।

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