महंत अवैद्यनाथ को अपनी मां का नाम याद नहीं रह गया था क्योंकि जब वह बहुत छोटे थे तभी उनके माता पिता की अकाल मृत्यु हो गई थी। वह दादी की गोद में पल रहे थे। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा पूर्ण होते ही दादी की भी मृत्यु हो गई । उनका मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया और उसमें वैराग्य का भाव भरता गया। उनके पिता जी तीन भाई थे। वह अपने पिता के एकलौते पुत्र थे। उन्होंने अपनी सम्पत्ति दोनों चाचा को बराबर बांट दिया और वैराग्य ले लिया।
राजनीति में महंत अवेद्यनाथ
1962 में पहली बार मानीराम विधानसभा क्षेत्र से विजयी होकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे और लगातार 1977 तक मानीराम से विजयी होते रहे। 1980 में महंत अवेद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से सन्यास लेने का ऐलान किया और हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने में लग गए। इस मंडल में वह एकलौते शख्स थे जिन्होंने पांच बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता। यहां तक की ‘जनता लहर’ में भी वह अपराजेय रहे। 1998 में उन्होंने अपने शिष्य आदित्यनाथ को चुनाव लड़ने का निर्देश दिया।
राम जन्मभूमि आंदोलन
जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में महंत अवेद्यनाथ को श्रीराम जन्म भूमि मुख्य आंदोलन का अध्यक्ष चुना गया। महंत जी द्वारा कराए गए जनसंघर्ष के क्रम में पवित्र संकल्प के साथ अयोध्या के सरयू तट से 14 अक्टूबर को एक धर्म यात्रा लखनऊ पहुंची जहां हजरत महल पार्क में लाखों हिंदू जनता ने हिस्सा लिया। आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए 22 सितंबर 1989 को नई दिल्ली के बोर्ड क्लब पर विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। इसमें प्रस्ताव पास किया गया कि श्रीराम जन्म भूमि, हिंदुओं की था और रहेगी। भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को शिलन्यास संपन्न होगा। लेकिन गृहमंत्री से वार्ता के बाद यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। सरकार पर दबाव डाला गया कि वह शिलन्यास की अनुमति दें। जगह-जगह राम शीला पूजा का कार्यक्रम किया गया।
जब 1989 में लोकसभा चुनाव चल रहा था तभी चुनाव में राम मंदिर मुद्दे पर संत महात्माओं के प्रतिनिधि के तौर पर महंत जी हिंदू महासभा से चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि वह राजनीति से अलग हट चुके थे, लेकिन जब हिंदू समाज के साथ अन्याय होता देख चुनावी समर में उतरना उनकी मजबूरी हो गई। 21 नवंबर 1990 को महंत अवेद्यनाथ ने मंदिर के लिए कहा था कि अब याचना नहीं रण होगा। 27 फरवरी 1991 को उन्होंने और विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल ने गोरखपुर में एक जनसभा को संबोधित किया। 23 अप्रैल 1991 में गोरखपुर संसदीय चुनाव क्षेत्र से अपना पर्चा दाखिल करते समय श्रीराम जन्म भूमि और रोटी को ही अवेद्यनाथ ने अपना मुद्दा बताया। उनके नेतृत्व में कई प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्रियों से मिलता रहा और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से तीन बार भेट की। 29 जुलाई 1992 को अवेद्यनाथ ने लोकसभा में कहा कि पूर्वाग्रह की वजह से श्रीरामजन्म भूमि मुद्दे का हल नहीं निकल पा रहा है। 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में पांचवीं बार धर्म संसद का आयोजन किया और प्रधानमंत्री को तीन माह का समय दिया गया। 6 दिसम्बर 1992 को राममंदिर के निर्माण के लिए कारसेवा प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया।
महंत अवैद्यनाथ एवं योगी आदित्यनाथ
उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले के पंचुर गांव में वन विभाग में काम करने वाले आनंद सिंह बिष्ट और सावित्री देवी के 7 बच्चे हैं। इसमें तीसरे बेटे का नाम अजय बिष्ट था। गांव में रहने वाले अजय सिंह बिष्ट पढ़ने में तेज़ थे तो उन्होंने इंटर के बाद ग्रजुऐशन और पोस्ट ग्रेजुऐशन किया। पढ़ाई के दौरान वो पंचुर के पास कांडी गांव के रहने वाले संत महंत अवैद्यनाथ के सम्पर्क में आये। अवैद्यनाथ महाराज गोरखपुर के गोरखनाथ मठ के महंत थे और उन्हें एक योग्य उत्तराधिकारी की तलाश थी।
इसी बीच अजय सिंह बिष्ट के व्यवहार और तेज़ से प्रभावित होकर महंत अवैद्यनाथ ने अजय सिंह बिष्ट को साथ चलने को कहा। जीवन के मायने समझने और संन्यास से प्रभावित होकर अजय सिंह बिष्ट महंत अवैद्यनाथ के साथ चल पड़े। अजय ने घर में मां को तो इस बात का इशारा कर दिया लेकिन पिता से कहा कि वो नौकरी करने जा रहे हैं। गोरखपुर जाकर जब संन्यास लेने का फ़ैसला अजय सिंह बिष्ट ने कर लिया तब तक पिता इस फ़ैसले से अनभिज्ञ थे। अपने गुरु से दीक्षा लेने के बाद उनका नाम पड़ा ‘योगी आदित्यनाथ।
अवैद्यनाथ महाराज का राम मंदिर आंदोलन की वजह से बड़ा नाम था। पिता भी विचारधारा से संघ से जुड़े थे। ऐसे में बड़े संत का सानिध्य ही परिवार की संतुष्टि का सहारा था। इसके बाद गोरखपुर से जब योगी आदित्यनाथ ने 26 साल की उम्र में चुनाव लड़कर संसद का रास्ता तय किया तो परिवार बेहद खुश था।
निधन
महंत अवेद्यनाथ का निधन 12 सितम्बर 2014 को हो हुआ था। 97 वर्षीय महंत एक माह से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। शुक्रवार शाम हालत बिगड़ने पर उन्हें विशेष विमान से गोरखपुर लाया गया जहां उन्होंने शरीर छोड़ दिया था।
यह भी पढ़ें : मदरसे को छोड़कर स्कूल जाना चाहता था 11 साल का समीर, इसलिए कर दी गयी हत्या
403 total views, 1 views today